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तरोताजगी: पूर्व-उत्तर-पूर्व

10-4-2021 Blog

तरोताजगी: पूर्व-उत्तर-पूर्व.

तरोताजगी: पूर्व-उत्तर-पूर्व
यहाँ बाथ, स्पा या खेलने का स्थान जीवन में लाता है तरोताजगी, नई स्फूर्ति।
जीवन में आपका नियमित रूप से नयापन पाने व तरोताज़ा होने की जरूरत पड़ती है। मूलाधार आपको अपने मूल, ध्येय, आपके अपने प्रयोजन से जोडे़ रखने की क्षमता देता है, जिसे पूर्व-उत्तर पूर्व का दिशा क्षेत्र शक्ति देकर पुष्ट करता है। इसे तरोताजगी एवं पुनर्जागृति का जा़ेन या दिशा क्षेत्र कहते है।
वास्तु शास्त्र में इसे सान का स्थान कहा गया है। अब इस स्नान शब्द का अर्थ हम तीनों तलों- अन्नमय कोष, प्राणमय कोष और मनोमय कोष - पर देखते है। अन्नमय कोष में तो स्थूल शरीर की स्वच्छता और शरीर की मैल धुलने के अलावा एक और अनुभव भी आता है - तरो-ताजगी का भीतर से कोई भाव उठके आता है। इसका कारण यह है कि हमारे 70 प्रतिशत शरीर में पानी है। और बाहर जैसे ही पानी के साथ स्पर्श होता है तभी ऊर्जा के तलों पर स्वाधिष्ठान चक्र फिर से अपनी सामान्य अवस्था में आ जाता है। इसलिए ऊर्जा के तल (पाणमय कोष) पर भी ताजगी की घटना घटित होती है। 
वास्तु महा वास्तु के हमारे एक ट्रेनर बहुत ही अच्छे वास्तु कंसलटेंट हैं। उन्होंने एक नई आॅब्ज़र्वेशकी। आमतौर पर जब भी सम्बन्धों में दिक्कत हो, दरार, तनाव या कटुता हो तो हम हमेशाा दक्षिण-पश्चिम में ही उपचार करते हैं। क्योंकि यह सम्बन्धों का कोना है। 
इस मामले में उन्होने सबसे पहले दक्षिण-पश्चिम में देखा किंतु वहाँ कोई लक्षण नहीं मिले, बह बिलकुल ठीक था। महावास्तु में यह बात तय है कि अगर आपको लक्षण नहीं मिले तो उसका उपचार न करें, क्योंकि ऐसे में परिणाम भी नही मिलगें। रिजल्ट तभी मिलेंगे जब आपको लक्षण स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ जाएंगे।
उन्होंने सारे ज़ोन चेक किए तो पाया कि पूर्व-उत्तर-पूर्व के कोने के सिवाए बाकी पूरे घर के वास्तु ज़ोन एकदम ठीक हैं। पूर्व-उत्तर-पूर्व के क्षेत्र (एरिया) में कुछ अलमारियाँ रखी हुई थी। उनमें कुछ पुराने कागजात और सामान रखा हूआ था। सबसे ज्यादा सामान उनकी शादी के समय का इकट्ठा करके रखा हुआ था और वह बिल्कुल एक अस्त-व्यस्त स्टोर जैसा था। तो जैसे ही उस हिस्से का उन्होंने उपचार किया, तुरंत ही परिवार के आपसी सम्बन्धों में ताज़गी आ गई।
केस स्टडीः जीवन में उमंगों और खुशियों की वापसी 
दिनेश और सोनाली का परिवार एक प्रेमपूर्ण शुशहाल भारतीय मध्यम वर्गीय परिवार था। कुछ समय से सोनाली को अपने मध्यम वर्गीय परिवार था। कुछ समय से सोनाली को अपने पति के कारण तनाव होने लगा था क्योंकि वह अपने पसंदीदा विषयों में भी दिलचस्पी नहींे ले पा रहे थे। वह अक्सर शिकायत किया करते कि उन पर सुस्ती और उबाऊपन हावी होता जा रहा है। दिनेश चिड़चिड़े भी हो गए थे। यहाँ तक कि दूसरों के सामने सोनाली पर चिल्ला उठते। वह भी हर वक्त थकी-थकी सी रहने लगी थी। दिनेश जितना सोनाली को थका हुआ देखते उतना ही और क्रोधित होते।
सोनाली की निराशा बढ़ती गई और वह अवसादग्रस्त (डिप्रैशन में आना) हो गई। साथ ही बिना वजह भी रोती रहती। मुझसे सोनाली की मुलाकात एक पुराने मित्र द्वारा हुई थी। सोनाली ने अपनी समस्याओं को मेरे सम्मुख खुलकर प्रकट किया। मैं उनके घर गया और उनके घर को महावास्तु विधि के आधार पर विश्लेषित किया।
मैंने देखा कि उनका शयन कक्ष पूर्व-उत्तर-पूर्व ज़ोन में था। उस शयन कक्ष में एक परछती (लाॅफ्ट) थी जिसमें सामान भरा पड़ा था। इसके कारण ही इस घर के वासियों में आनंउद का हृास होने लगा था। महावास्तु कोर्स में पढ़ाए जाने वाले पंचतत्वों के सिद्धांत के आधार पर इस स्थिति को सरलता से समझा जा सकता है। 
पूर्व-उत्तर-पूर्व वायु तत्व का दिशा क्षेत्र है। और वहां पर स्टोर के रूप में पृथ्वी तत्व आ गया था। चंकि पृथ्वी तत्व वायु वत्व के लिए विरोधी तत्व है, अतः यह उनके घर में खुशियों और आनंद प्राप्ति की संभावनाओं को क्षीण कर रहा था। तब मंैने उस परछत्ती (लाॅफ्ट) को साफ करने के साथ-साथ वहाँ हरा रंग करवाने की भी सलाह दी और शयन कक्ष को बदलने को भी कहा।
महावास्तु के दन सरल उपायों ने कमाल के प्रभाव दिखाए। छह महीनों में ही परिवार के आपसी संबंधों में नाटकीय परिवर्तन आया। संबंधों में छोटी-छोटी बातों पर अटकने की प्रवृत्ति जाती रही और उनके आपसी संबंध पहले से कहींे ज्यादा बेहतर हो गए। दिनेश अब काफी जिम्मेदार पति हो गए थ और अपनी पत्नी का सम्मान करने लगे थे। इस कारण सोनाली भी तनावरहित, निश्चित (रिलैक्स्ड) एवं महसूस करने लगी थी।

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